अकेला मेरा समाज

 अ-धर्म से लड़ना अ-धर्म हो रहा अपनो की गद्दारी से 

क्षत्रिय अपना धर्म खो रहा अपनो की गद्दारी से 

सर कटाना परम धर्म था क्षत्रिय का वो सर झुकाने पर आ गया अपनो की गद्दारी पर

क्या कहु क्या करूँ इतना अकेला हो गया समाज मेरा अपनो की गद्दारी से कुछ करके भी कुछ ना करपाऊ अपनो की गद्दारी से


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